मुलायम की वो कहानी जिसनें मुलायम को धरती पुत्र बनाया
३ बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और देश के रक्षा मंत्री रहे सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव आज मेदांता में जिंदगी और मृत्यु के बीच की जंग हार गए।
मुलायम का जन्म २२ नवंबर १९३९ में सैफई में हुआ। नेता आज हमारे बीच नहीं हैं। कुछ सालों से लगातार बीमारी से ग्रसित रहे। पहलवानी करने वाले मुलायम पहले शिक्षक बनें; फिर लोहिया के शिष्य बन कर सियासत में आये, कहना चाहिए ५५ वर्षों के सियासी सफर में उन्होंने खूब ख्याति प्राप्त की और अपनी जमीन को मजबूत करते गए हालाँकि उनके साथ कुछ विवाद भी जुड़े रहे।
वो खासकर भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते भी नजर आये किन्तु आर०एस०एस० के घुर विरोधी थे। हालाँकि यह बात सोनिया गाँधी और अखिलेश यादव को नहीं भाई लिन्तु यही उनके सियासी गुण थे। साधारण से दिखने वाले मुलायम सिंह यादव ने बहुत ही बेहतर तरीके से अपने राजनैतिक जीवन को जिया कहें तो नेताजी छोटे से बड़े जिन्हें भी जानते कभी नहीं भूले। जबतक सत्ता की छभी मुलायम के हाँथ में रही तब तक सत्ता सपा के पास रही।
पुराने लोगों को अब भी याद है की किस तरह लखनऊ में मुलायम ८० के दशक में साइकल से सवारी करते नजर आते थे। साईकल चलाते हुए अख़बारों के दफ्तर और पत्रकारों के पास भी पहुँच जाया करते थे कांग्रेस नेता पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह के पास इनकी गहरी बैठक रही। उन्हें खाती सादगी पसंद और जमीन से जुड़ा ऐसा नेता माना जाता था जो लोहियावादी था, समाजवादी था, धर्मनिस्पेक्षता की बात करता था। समुदाय विशेष ने इनकी सत्ता की खासी कृपा प्राप्त की। हालाँकि ८० के दशक में वे यादवों के नेता माने जाने लगे। किसान और गांव का ग्रामीण रहन उन्हें किसानों के करीब रखती रही थी।
हालाँकि निर्णायक नेता की छवि के कारण अल्पसंख्यक के पसंदीदा नेता वो राम मंदिर आंदोलन के शुरुआती दिनों में रहे १९९२ में उन्होंने एक नई पार्टी बनाई जिसे हम और आप समाजवादी पार्टी के तौर पर जानते हैं। जिसका प्रतीक चिन्ह उन्होंने उसी साईकल को बनाया जिसपर उन्होंने खूब सवारी की थी। इसमें कोई शक नहीं कि वो जिस ग्रामीण प्रभाव से राजनीती में आये और मजबूत हुए उसमें उनकी सूझ बूझ थी और हवा को भांपकर अक्सर पलट जानें की प्रवर्ति भी थी।
लोग उत्तर प्रदेश के २०१७ चुनाव परिणाम को उपहार स्वरुप भाजपा को सौंपा, कहते हैं। कई बार उन्होंने अपने फैसले और बयानों से खुद ही पलटी मार ली। राजनीती में कई सियासी दलों और नेताओं ने उन्हें गैर भरोसेमंद माना; लेकिन हकीकत ये है कि उत्तर प्रदेश की राजनीती में जब वो सक्रिय रहे तब तक किसी न किसी रूप में अपरिहार्य बने रहे। मुलायम सिंह यादव ८० के दशक में राजनीती के बेहद मुश्किल दौर से गुजर रहे थे।
उनपर हमले हुए, साजिशें हुईं। हर बार उनके छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव ने उन्हें बचाने में जान लगा दी। इसी वजह से शिवपाल इनके सबसे करीबी सलाहकार बनें रहे। शायद आज यही कारन है कि शिवपाल सिंह यादव सपा में नहीं हैं क्योंकि मुलायम सपा से दूर हो रहे थे। बेशक मुलायम सिंह यादव आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनसे जुड़े विवाद, उनकी कूटनीति और साथ ही सभी दलों की अच्छी समझ, आंतरिक व जमीनी समझ बहुत ही चतुर थी। साथ लेकर चलने की उनकी क्षमता समय - समय पर हमे याद आती रहे गी।
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